मातम
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ShivrajD
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जहां कहीं भी, जब कभी भी उसकी आवाज सुनाई देती है। मौत का मातम छा जाता है, पुरे घर में सन्नाटा हो जाता है। और जिस किसी को भी वो नजर आ जाए वह अपनी जिन्दगी के उलटे दिन गिनने शुरू कर देता है। उसे ये मालूम हो जाता है कि अब उसकी मौत उसके करीब है।
इसकी शुरुवात कब हुई थी मुझे ठीक से पता नहीं। पर जब ये तीसरी बार हुआ तब मुझे उस बात का एहसास हुआ था। मैंने वो आवाज तीसरी बार सुनी थी। एक उल्लू जो हमारे घर के आसपास घूमता था और चिल्लाता था या शायद रोता था। और जब उसकी आवाज घर में सुनाई देती थी, तो घर के सारे लोग अपनेआप को एक कमरे में बंद कर लेते थे। कोई भी नहीं चाहता था की वो नजर आ जाये। पर फिर भी जिस किसी को भी वो उल्लू नजर आ जाता उसकी मौत पक्की होती थी। और इस बात को मैं ही नहीं बल्कि घर में सब लोग जानते है। जब मैंने पहली बार उल्लू की आवाज सुनी थी तब मेरे चाचा की मौत हुई थी। जब दूसरी बार आवाज सुनी थी तो मेरे छोटे भाई की मौत हुई थी। और आज ये तीसरी बार है जब मैंने उस उल्लू की आवाज सुनी है। जब से वो आवाज सुनी है, तबसे दादी की तबियत ख़राब है। मतलब साफ़ था, की मेरी दादी को वो उल्लू दिखाई दिया होगा। और अब जल्द ही उसकी भी मौत होने वाली है।
कहते है अगर किसीको उल्लू का रोना सुनाई दे तो वो अशुभ संकेत होता है। या फिर उल्लू की आवाज सुनाई देना मतलब किसी अपने की मौत।
पर ये सब हमारे साथ ही क्यों हो रहा था? इसके पीछे क्या राज है? मुझे कुछ पता नहीं था। पिछले कुछ महीनो से हम सब इन हादसों से इतने डरे हुए थे की हमारा घर से बाहर निकलना तक मुश्किल हो गया था।
उस रात मेरे पिताजी, मेरी माँ और मैं हम तीनो दादी के कमरे में रुके हुए थे। दादी की हालत बोहोत ही ख़राब थी पर डर के मारे कोई भी घर से बाहर जाना नहीं चाहता था। इसलिए हमने डॉक्टर को फोन कर घर पर बुला लिया। डॉक्टर ने आकर मेरी दादी का चेकअप किया और उन्हें जल्द से जल्द हॉस्पिटल में एडमिट करने को कहा था। पर सब पहले ही इतने डरे हुए थे की बाहर जाने को कोई भी तैयार नहीं था। सब इस सच्चाई को अच्छी तरह से जानते थे की हम कितनी भी कोशिश क्यों न कर ले, पर दादी को हम नहीं बचा सकते। मैंने खुद उस रात दादी की हालत देखि थी। दादी रातभर दर्द से चीख रही थी, चिल्ला रही थी। उसकी आँखों का रंग बदल चूका था। उसकी आँखों में सफ़ेद रंग उतर चूका था। आँखों से कान, नाक से बस खून निकल रहा था। सच कहु तो दादी अपने होश में ही नहीं थी। ऐसा लग रहा था उसके अंदर कोई और ही है। हम सबने दादी को बिस्तर से बांध रखा था। क्योंकि रोते रोते बिच में ही अचानक हो वो उठकर बैठ जाती और कुछ भी बड़बड़ाने लगती थी।
"तुम्हारी भी जल्द ही ऐसी ही हालत होगी। सबकी मौत आएगी। मैं फिर आउंगी।"
पर मुझे दादी की बात जरा भी समझ में नहीं आ रही थी। की वो ऐसा क्यों बोल रही थी। पापा और मम्मी जानते थे शायद पर वो मुझे बताने को तैयार ही नहीं थे। तो उस रात मैं बस एक कोने में बैठ वो सब देख रहा था। मैंने उस रात दादी को दर्द से पल पल मरते देखा। पर कोई कुछ नहीं कर सकता था। एक बात तो मैं समझ चूका था की वो दादी नहीं थी। बल्कि कोई और ही थी। क्योंकि दादी इतनी ताकत से उठकर बिस्तर पर बैठती थी की पूरा बिस्तर हिल जाता था। दादी ने तो कई बार अपनी ताकत से हाथो पर बंधी रस्सिया तक तोड़ दी थी। उतनी ताकत दादी में कभी थी ही नहीं। कुछ तो गलत था। घर में सब जानते थे पर मुझे कोई बताना नहीं चाहता था। और फिर सुबह होते होते दादी की मौत हो गई। मेरे लिए हैरानी की बात ये थी की दादी के अंतिम संस्कार को भी चुपकेसे और जल्दबाजी में किया गया। और उस वक्त हमारे परिवार से किसी को भी नहीं बुलाया गया था, या फिर दादी की मौत ही इतनी भयानक थी की कोई उसे देखने आया नहीं था। पापा, मम्मी और मैं बस हम तीन लोग ही थे और हमारी चाची थी।
उस दिन के बाद तो पिताजी और भी डर गए थे। मालूम ही नहीं था की आगे क्या होने वाला है। और कौन मरने वाला है। मैं तो हर रोज उनसे पूछता था की आखिर हुआ क्या है। घर के लोगो को कौन मार रहा है। पर मेरे कई सारे सवालो के बावजूद वो मुझे कुछ नहीं बता रहे थे।
अगले ही दिन पापा ने एक मांत्रिक को बुलाकर घर में तंत्र मंत्र, झाड़ फुक करवाई। घर में जो भी बुरी शक्ति थी उसे हटाने का पूरा इंतजाम किया। घर से एक हरे रंग का कपडा लेकर वो घर के पीछे चला गया। जाने से पहले उसने कहा की वो हम सबको कुछ देर के लिए घर के अंदर ही बंद करने वाला है। उस बुरी शक्ति को कैद करने के बाद ही वो वापस घर का दरवाजा खोल देगा। पर जब वो वापस आएगा घर का कोई भी इंसान उससे कोई भी सवाल नहीं करेगा। और उसे पीछे मुड़ने पर मजबूर नहीं करेगा।
कुछ देर तक उस तांत्रिक ने घर के पीछे जाकर कुछ तंत्र मंत्र किया। थोड़ी देर बाद वापस आकर उसने दरवाजा खोल दिया और बिना कुछ कहे, बिना पीछे मुड़े वहा से चला गया।
और उसके बाद कुछ दिन गुजर गए। सब जैसे शांत सा हो गया। ऐसा लग रहा था जैसे जो भी बुरी ताकत थी वो इस घर को छोड़कर चली गई है। पापा भी बोहोत दिनों बाद काम पर गए थे। और मुझे भी घर से बाहर जाने को इजाजत दी गई। और फिर ऐसेही एक दिन मैं बाहर से खेलकर श्याम को वापस घर लौट रहा था। तो मैंने देखा की हमारे घर के पीछे एक नारियल के पेड़ के पास एक बड़ा सा लाल पथ्थर रख्खा हुआ था। शायद उसे कुमकुम से रंग दिया था। मैंने उस पत्थर के पास जाकर ठीक से देखा तो वो अजीब सा पथ्तर था। उस पर सफेद रंग की दो आंखे बनी हुई थी। और उसके निचे कुछ तो हरे रंग की चीज थी जो चमक रही थी। मैंने उस पत्थर को उठाकर देखा तो उस पथ्थर के निचे एक हरे कपडे में कुछ चुडिया, मंगलसूत्र लपेट कर रखा हुआ था। और उसपर भी कुमकुम लगा हुआ था। जैसे मैंने वो कपडा उठाया अचानक ही मुझे उल्लू की आवाज सुनाई दी।
वो आवाज सुनकर मैं बोहोत ही डर गया। घबराहट में मैंने यहाँ वहा देखा और फिर अचानक ही मुझे याद आया की उल्लू को देखना नहीं है। उल्टा जिसे वो दिखाई देता है उसकी मौत हो जाती है। पर उस आवाज से एक बात तो साफ़ थी की अब घर में किसी न किसी की तो मौत पक्की थी। मैंने झट से उस कपडे को, चूड़ियों को वही फेंक दिया और दौड़कर घर के अंदर चला गया। पर मैंने उस आवाज के बारे में और उस कपडे के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया।
और उसी श्याम को पापा भागते हुए घर पर आ गए। उस वक्त लगभग श्याम के ७ बज चुके थे। वो आते ही मेरी माँ के सामने गिड़गिड़ाते हुए रोने लगे।
"मुझे बचालो नीलिमा। वो मुझे मार देगी।"
मेरी माँ उनसे पूछ रही थी। की "क्या हुआ? सब तो ठीक है न। मुझे तो कोई आवाज सुनाई नहीं दी। "
पर पापा बस रोये चले जा रहे थे। और वो गिड़गिड़ा तो मेरी माँ के सामने रहे थे पर वो मेरी माँ से नहीं बल्कि और किसी से रहम की भीख मांग रहे थे।
मुझे छोड़ दो। मुझसे बोहोत बड़ी गलती हो गई। मुझे माफ़ कर दो। बस एक बार माफ़ कर दो। दूसरी कोई भी सजा दो पर मुझे छोड़ दो।
उनकी हालत देख मेरी माँ भी रोने लगी। वो बार बार पूछती रही की क्या हुआ है ?
तब मेरे पिताजी ने बताया की आज दोपहर उन्होंने उल्लू की आवाज सुनी। और आवाज सुनकर वो अपने फैक्टरी के बाथरूम में जाकर छुप गए थे। पर तभी उन्हें फॅक्टरी के छत के पास एक उल्लू दिखाई दिया। और वो उन्हें देख कर रोये जा रहा था।
पापा इतना कहकर दौड़कर घर के पीछे चले गए। मैंने खिड़की से बाहर झांककर देखा तो वो अँधेरे में उसी नारियल के पेड़ के निचे कुछ ढूंढ रहे थे। मैं समझ गया था की वो क्या ढूंढ रहे है। शायद मैंने अनजाने में बोहोत बड़ी गलती कर दी थी। और उस गलती की सजा मेरे पिताजी की मौत थी।
बोहोत ढूंढने के बाद भी उन्हें वहा कुछ मिला भी या नहीं पता नहीं पर तभी हम सबको फिर से उल्लू की आवाज सुनाई देने लगी। और वो आवाज सुनते ही वो फिर से भागते हुए घर के अंदर आये और मेरी माँ से कहने लगे।
"अभी के अभी सारे खिड़की दरवाजे बंद कर लो। कोई भी घर से बाहर नहीं जायेगा। "
मेरी माँ ने रोते हुए ही कहा, पिछली बार भी हमने सब खिड़की दरवाजे बंद किये थे। पर फिर आपकी माँ को हम नहीं बचा सके।
तो पापा माँ पर जोर से चिल्लाये, "तो क्या तुम चाहती हो मैं भी मर जाऊ। हाँ, क्या तुम भी यही चाहती हो। हां। .... जितना कहा है उतना करो। "
और फिर मेरे पापा ने जिस तांत्रिक को घर बुलाया था उसे फोन करना शुरू किया।
फोन पर बार बार एक ही जवाब सुनाई दे रहा था। "आप जिस व्यक्ति से संपर्क करना चाहते है वो अभी उपलब्ध नहीं है। "
बार बार इस मैसेज को सुनने के बावजूद पापा फोन पर फ़ोन किये जा रहे थे। और उन्हें बार बार वही मैसेज सुनाई दे रहा था। पापा मौत के डर से पागल हो चुके थे। उन्हें तो जैसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उन्होंने घर की सारी लाइट भी बंद कर रख्खी थी।
मैंने पापा के पास जाते हुए फिर से पूछा, "पापा आखिर हुआ क्या है ? आप इतने क्यों डरे हुए हो? कौन है जो आपको मारना चाहता है? मुझे कुछ तो बताओ।"
पापा ने डरते हुए ही कहा, "वो वापस आ चुकी है। वो हम में से किसी को जिन्दा नहीं छोड़ेगी।"
मैंने पापा को झंझोड़ते हुए पूछा, "पापा, कौन वो? किसके बारे में बात कर रहे हो आप?"
और तभी हमें कही जोर से बिजली गिरने की आवाज आई। उस आवाज से हम तीनो के शरीर काँप उठे थे। बाहर जोरो से बारिश शुरू हो चुकी थी। पापा की हालत तो और ख़राब होती चली जा रही थी। उनका बीपी बढ़ते ही चला जा रहा था। बदन पसीना पसीना हो चूका था। साँस लेने में तकलीफ होने लगी थी। किसी भी चीज की आहट उन्हें मौत की आहट जैसी लगने लगी थी।
तभी हमे फिर से उल्लू की आवाज सुनाई देने लगी। उस आवाज के आते ही घर का दरवाजा अपने आप ही धड़ाम से खुल गया। तब हम सबने देखा की घर के बाहर से जो रोड गुजरती थी उसके उस पार बारिश में भीगते हुए कोई औरत खड़ी थी। जैसे ही बिजली चमकती थी वो डरावनी औरत दिखाई देती थी। उसके बदन पर हरे रंग की साड़ी थी। और अपना हाथ उठाकर वो हमारे घर की और ही इशारा कर रही थी। पापा अब बोहोत ही डरे हुए थे और बोहोत ही बुरी तरह से काँप रहे थे। हमे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करना है। पर तभी पापा उठकर किसी रोबोट की तरह सीधे उस औरत की दिशा में चलने लगे।
मम्मी ने उन्हें पूछा की, "आप कहा जा रहे हो?"
पर पापा ने बस इतना ही कहा की, "मेरे बाहर जाते ही दरवाजा बंद कर लो और कल तांत्रिक को घर बुला लेना।"
डर के मारे मम्मी ने मुझे अपने गले लगा लिया था और पापा की हालत देख वो भी रोने लगी थी। मैंने देखा की पापा घर के दरवाजे से बाहर निकल गए। और बारिश में भीगते हुए उस औरत की तरफ दौड़ते हुए जाने लगे। पापा दौड़ते हुए रोड के बीचो बिच पोहोंच ही गए थे की तभी जोरो से बिजली कड़की और रोड से तेजी से गुजरती हुई एक ट्रक ने उन्हें कुचल दिया। उनका एक्सीडेंट होते ही उस औरत ने घर की और किया हुआ अपना हाथ धीरे धीरे निचे किया। और अचानक ही वो कही गायब सी हो गई।
मैंने माँ से पूछा, "आखिर वो औरत कौन है? क्या चाहती है वो? वो हमें क्यों मार रही है। "
पर एक्सीडेंट देख माँ को जैसे सदमा सा लग गया था। वो बस सामने रास्ते की और देखे चली जा रही थी। हमने जब रास्ते पर जाकर देखा तो पापा की बॉडी को बोहोत बुरी तरह से कुचला गया था। उसके बाद जैसे दादी के अंतिम संसार के वक्त हुआ था वही पापा के साथ भी हुआ। कोई रिश्तेदार, कोई दोस्त नहीं आया।
माँ ने उसके दूसरे ही दिन तांत्रिक को घर बुला लिया। तांत्रिक ने घर में आते ही जैसे किसी चीज को सुंग लिया। और उसने कहा, "वो वापस आ गई है। मैंने उसे बांध दिया था, पर किसीने उसे फिर से खोल दिया है। और अब उसे बांधना मुश्किल है। "
तब मैंने तांत्रिक से कहा, की "बाबा, हमें अचानक ही उल्लू की आवाज सुनाई देती है और उसके बाद घर में किसी न किसी की मौत हो जाती है। "
तो तांत्रिक ने बताया की, "भूते-प्रेत, जिन्न-जिन्नात जैसी ना दिखाई देने वाली पारलौकिक शक्तियों को उल्लू देख सकता है, और फिर अपनी आवाज से वो लोगो को वहां जाने से रोकता है। पर आप लोगो के मामले में ये उल्टा है, आपके लिए उल्लू मौत की खबर लेकर आता है। ऐसी खबर जिसे कोई नहीं टाल सकता।"
मेरी माँ ने रोते हुए ही बाबा से पूछा, "उस औरत को रोकने का कोई तो तरीका होगा। "
तो बाबा ने कहा, "अब उसे कोई नहीं रोक सकता। मैं भी नहीं। अब बस इंतजार करो उसका और अपनी मौत का। "
इतना कहकर वो तांत्रिक घर के बाहर चला गया।
बाबा की बात सुनकर माँ बोहोत डर गई। और मुझसे लिपटकर रोने लगी। और अचानक ही अपने कमरे में जाते हुए उसने कहा, "जल्दी से जितना हो सके उतना जरुरी सामान पैक कर लो। हम अभी के अभी इस घर को छोड़कर चले जायेंगे। "
तो मैंने माँ को रोकते हुए पूछा, "पर माँ कौन है वो औरत? मुझे कोई कुछ क्यों नहीं बता रहा? क्यों वो हम सब को मार रही है। "
तो मेरी माँ ने इतना ही कहा, "बस इतना ही समझ लो की किसी और की करनी का फल हम भुगतने वाले है।"
और ऐसा कहकर वो जल्दी से अपने कमरे के अंदर चली गई।
मैं वही का वही खड़ा रहा। तभी मुझे फिर से उल्लू की आवाज सुनाई दी।
माँ दौड़कर अपने कमरे से बाहर आई, वो बोहोत घबराई हुई थी।
"तुमने सुना, वो आवाज। आज जरूर हम दोनों में से किसी की एक मौत पक्की है। "
पर मैंने उन्हें बस शांत रहने को कहा, वो आवाज सुनकर माँ तो जैसे पागल सी हो गई थी। वो घर में यहाँ वहा भाग रही थी। छुपने के लिए जगह ढूंढ रही थी।
मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था की मैं करू तो क्या करू। किससे मदत मांगू। उस भूत चुड़ैल जो कोई भी है उससे माँ को और अपने आप को कैसे बचाऊ?
तभी हमारे घर का टेलीफोन बज उठा। मैने टेलीफोन उठाया।
"हैल्लो!"
"जी मैं संजीवन हॉस्पिटल से बात कर रहा हु। क्या आप सुनंदा अवस्थी को जानते है?"
मैंने कहा, "हाँ, वो मेरी चाची है। क्यों क्या हुआ ?"
"उनकी तबियत बोहोत ज्यादा ख़राब है। आप जल्द से जल्द हॉस्पिटल में एमर्जेन्सी वार्ड में आ जाइये।"
वो सुनते ही मेरा दिमाग सुन्न सा हो गया। हमारे घर में पिछले कुछ महीनो से एक के बाद एक किसी न किसी की मौत हो रही थी। कोई अनजान भूतिया चीज थी जो हमें एक एक कर मार रही थी। और हम कुछ नहीं कर सकते थे। पहले मेरे चाचा, उसके बाद मेरा छोटा भाई, उसके बाद दादी, कुछ दिन पहले ही पापा, और अब चाची।
मैंने देखा की माँ ने तब तक अपने आप को कमरे में बंद कर लिया था। मैंने उसके दरवाजे को पीटते हुए ही कहा, "माँ, जल्दी से बाहर आओ, हमें हॉस्पिटल जाना है। चाची की तबियत बोहोत ख़राब है।"
माँ ने घबराते हुए ही दरवाजा खोला। तब वो बुरी तरह से काँप रही थी। वो इतनी डरी हुई थी की उससे चला भी नहीं जा रहा था। तो मैं उसे अपने हाथो के सहारे घर से अस्पताल तक लेकर गया। उस पुरे सफर के दौरान उसने अपनी आँखे नहीं खोली। वो डर रही थी कही कोई उल्लू न दिखाई दे।
हम जैसे ही अस्पताल पोहचे तो हमने देखा की चाची पर एक अलग आय सी यु के कमरे में इलाज चल रहा था। वो दर्द से कराह रही थी। कुछ देर बाहर रूकने के बाद डॉक्टर ने हम में से किसी एक को ही अंदर जाने की परमिशन दी। तो मेरी माँ आय सी यु कमरे के अंदर चली गई। तब मैंने डॉक्टर से पूछा की, "चाची को क्या हुआ है डॉक्टर?"
तब डॉक्टर ने बताया, "बोहोत बुरी हालत है। कुछ बोल नहीं सकते। बचना मुश्किल लग रहा है। "
मैंने फिर डॉक्टर से पूछा, "सर, उनके साथ क्या हुआ है। क्या आप मुझे बता सकते हो।"
डॉक्टर ने कहा, "अ, हं। ..डिटेल में तो नहीं पता, पर उनके किसी पडोसी ने पुलिस को फोन कर के ये खबर दी की उनके घर से अजीब अजीब चीखने चिल्लाने की आवाजे आ रही है। जब पुलिस उन्हें यहाँ लेकर आई तो उनके पुरे शरीर पर जलने के कटने के निशान थे। पर पुलिस के कहने के मुताबिक घर में वो अकेली थी। और कोई इंसान अपने आप को इतनी बुरी तरह से तभी घायल कर सकता है जब उसका अपने दिमाग पर काबू न रहे। वरना नॉर्मल कंडीशन में किसी इंसान के लिए इतना दर्द सहना नामुमकिन है।"
और इतना कहकर डॉक्टर वहा से चला गया।
मैं जानता था की हो न हो है उसी भूतिया चुड़ैल का काम है। मैंने तब आय सी यु कमरे की कांच से देखा तो माँ और चाची दोनों रो रही थी। तब चाची ने मुझे अंदर आने का इशारा किया।
मैं आय सी यु कमरे के अंदर चला गया। तब चाची ने मुझे अपने पास बैठने को कहा, और माँ को बाहर जाने को कहा, तब उन्होंने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा, "बेटा, मैं जानती हु की तुम जानना चाहते हो की वो औरत कौन है। जो हमारे परिवार के लोगो को एक एक कर मार रही है। वो औरत और कोई नहीं तुम्हारे पापा की पहली पत्नी थी। उसका नाम छाया था। बोहोत कम उम्र में तुम्हारे पापा की और उसकी शादी हुई थी। कुछ चार या पांच साल गुजर गए पर उसे बच्चा नहीं हो रहा था। जब डॉक्टर को दिखाया तो पता चला की वो कभीभी माँ नहीं बन सकती। और वो बात समझने के बाद घर के सब लोगो ने उससे बोहोत बुरा बर्ताव करना शुरू किया। उन दिनों उन सब में मैं भी एक थी। हम सब ने मिलकर उसे बोहोत ताने दिए। उसे बोहोत मारा पीटा गया। पर वो गरीब औरत आखिर तक ये सब सहती रही। बच्चे की चाहत में तुम्हारे पिताजी दूसरी शादी करना चाहते थे। पर वो औरत उन्हें छोड़ने को राजी नहीं थी। कहती थी, मेरा कोई नहीं है। जैसे रखलो रह लुंगी।
पर जब तक वो जिन्दा था, तुम्हारे पिताजी की दूसरी शादी नहीं हो सकती थी। और इसी कारन तुम्हारे घरवालों की बातो में आकर एक दिन गुस्से में हम सब ने मिलकर उसे जिन्दा जला दिया। वो आवाज न करे इस लिए उसका मुँह बंद कर उसे घर में बांध दिया। वो जलती रही तड़पती रही पर किसी को उसपर रहम नहीं आया। मरते वक्त वो एक ही बात कहती रही। मैं वापस आयूंगी। वक्त आने पर मैं जरूर वापस आउंगी।
वो तो मर गई। पर उस वक्त हम सब इतने पत्थर दिल हो चुके थे की हमने उसके मरने का शोक तक नहीं मनाया, न ही उसका अंतिम संस्कार किया। उसकी जली हुई लाश को वैसे ही घर के पीछे ही दफना दिया।
उसने कहा था, की वक्त आने पर वो वापस आएगी। और अब वो वापस आ गई है। वो हमारे पुरे परिवार को ही ख़त्म करना चाहती है। वो वो तुम्हे तुम्हारी माँ को,....."
अब चाची से बात नहीं की जा रही थी। तब अचानक की चाची के मुँह से खून निकलने लगा। मैं दौड़कर बाहर डॉक्टर को बुलाने चला गया। पर जब मैं डॉक्टर नर्स को लेकर वापस आया तो देखा की उस कमरे के बाथरूम से बोहोत ज्यादा खून बाहर आ रहा था। डॉक्टर ने बाथरूम का दरवाजा खोला तो देखा की चाची ने अपना खुद का गला काट लिया था। और वो बाथरूम के अंदर खून में लथपथ पड़ी हुई थी।
मैं भागकर बाहर आया और माँ को वापस घर चलने को कहा, "जब हम घर पोहचे तो मैंने माँ को उसके कमरे के अंदर बंद कर दिया। और कहा जब तक मैं न कहु तुम इस कमरे से बाहर नहीं आओगी। मैंने घर के पीछे की जमीं खोदने के लिए फावड़ा कुदाली लेकर वहा पहुँच गया। "
और जहा वो लाल पत्थर रख्खा हुआ था ठीक उस जगह को खोदने लगा। मैं जानता था की घरवालों ने उस औरत को यही दफनाया होगा। क्योंकि यही मुझे वो हरे कपडे में बंधी हुई चुडिया और मंगलसूत्र मिला था। दो से तीन घंटे बीत गए। बोहोत सारी जमीन को खोद लिया तब मुझे मिटटी में धसा हुआ कुछ जला हुआ काला कपडा सा दिखाई देने लगा। मैं फिर से पूरी ताकत लगाकर जमीन को खोदना शुरू किया। और जब मैं जमीं को खोद ही रहा था की मुझे फिर उल्लू की आवाज सुनाई दी। मैं जमीन को खोदते खोदते अचानक ही रुक गया। और डरते हुए यहाँ वहा देखने लगा।
तब मैंने देखा की वो भूतिया चुड़ैल हमारे घर के बाहर खड़ी थी। और वो अपना हाथ उठाकर घर की खिड़की की और इशारा कर रही थी। मुझे याद आया की वो तो मेरी माँ का कमरा है। और वो चुड़ैल शायद मेरी माँ की और इशारा कर रही है। मतलब अब वो मेरी माँ को अपना शिकार बनाना चाहती थी। तभी अचानक से खिड़की धड़ाम से बंद हो गई।
मैं सब वही छोड़कर भागकर घर के अंदर चला गया। और जब मैंने कमरे का दरवाजा खोलना चाहा तो देखा की दरवाजा अंदर से ही बंद था। मैंने माँ को आवाज दी।
"माँ, दरवाजा खोलो, माँ!"
पर माँ की कोई आवाज नहीं आ रही थी। मैं बार बार दरवाजा खटखटाये जा रहा था। पर माँ शायद इतनी ज्यादा डरी हुई थी की दरवाजा खोल ही नहीं रही थी। अगर मैंने उल्लू की आवाज सुनी है तो उसने भी जरूर सुनी होगी। या फिर उसे उल्लू दिखाई भी दिया हो।
मैंने दरवाजे को जोर जोर से धक्का देना शुरू किया। पर दरवाजा खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था। शायद मुझे देर हो चुकी थी। पर मैं हार नहीं मानना चाहता था। मेरे पापा ने या उनके परिवार ने जो भी किया था उसमे मेरी या मेरी माँ की क्या गलती थी। उनकी उस गलती की वजह से मैंने मेरे छोटे भाई को भी खो दिया था। अब मैं अपनी माँ को नहीं खोना चाहता था।
तो मैंने अपनी पहली माँ को आवाज देना शुरू किया।
"छाया माँ, छाया माँ,...मेरी माँ को छोड़दो। हमने आपका क्या बिगाड़ा है। हमे छोड़ दो हम यहाँ से कही दूर चले जायेंगे। इस घर को इस जगह को छोड़कर। प्लीज मेरी माँ को छोड़दो। आप भी मेरी माँ जैसी हो। आप हमें कैसे मार सकती हो। हमारे कोई गलती नहीं है। जिनको सजा मिलनी चाहिए थी उन्हें सजा मिल चुकी है। अब आप शांत हो जाओ, मैं खुद आपकी आत्मा की शांति की लिए प्रार्थना करूँगा। आपके बेटे की तरह आपका अंतिम कार्य करूँगा। पर प्लीज मुझे मेरी माँ को छोड़ दो। "
मैं बार बार उस बंद दरवाजे के सामने गिड़गिड़ा रहा था। छाया माँ से माफ़ी मांग रहा था। रो रहा था।
और मेरे बोहोत समझाने के बाद मेरी माँ अपने कमरे का दरवाजा खोला, तो मैंने देखा की उसके हाथ पाव काँप रहे थे। कमरे के अंदर किसी रस्सी से फांसी का फंदा बना हुआ था। मेरी माँ शायद अपने आप को फांसी लगाना चाहती थी। पर जब मैंने माँ की आँखों में देखा तो उसकी आँखों में खून जमा हो चूका था। और वो बिना पलके झपकाएं लाल आँखों से बस मुझे घूर रही थी। मैं जानता था की ये छाया माँ है। मैं फिर से उसके पैरो में गिरकर उससे माफ़ी मांगने लगा।
कुछ देर बाद मेरी माँ बेहोश होकर वही निचे गिर पड़ी। मैंने माँ को उठाया तो वो सामान्य सी लग रही थी। उसकी आंखे सामान्य थी। वो होश में थी। मतलब छाया माँ ने मेरी बात सुन ली थी। उसने हमें छोड़ दिया था।
माँ के होश में आते ही मैंने उन्हें सारि बात बता दी। तो माँ ने भी उस गरीब औरत की आत्मा से माफ़ी मांगी। अगले कुछ ही दिनों में मैंने घर के पीछे की जमीन को खोदकर छाया माँ के शरीर के बचे हुए भागों को जमीन से बाहर निकालकर किसी सुहागन की तरह उनका घर के आंगन में ही अंतिम संस्कार कर दिया।
उसके बाद मुझे और मेरी माँ को कभी किसी उल्लू की आवाज सुनाई नहीं दी। मतलब साफ़ था की छाया माँ ने हमें माफ़ कर दिया था।
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