साती आसरा – सात अप्सराओं का डरावना साया
HORROR PODCAST - HINDI HORROR STORIES
Ssivraj
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ये कहानी मुझे मेरी बहन ने सुनाई थी। मेरी बहन शादी के बाद से गांव में ही रहती है, और ये कहानियां उनके गांव की सच्ची डरावनी घटनाओं पर आधारित हैं।
उनके गांव का नाम बंबावडे है, जो सातारा से करीब 30 किलोमीटर दूर है। गांव के पास से एक छोटी नदी गुजरती है, जो असल में एक बड़ी नदी "तारली नदी" की एक शाखा है। इस छोटी नदी के आसपास कई पुराने कुएं भी बने हुए हैं।
गांव में हर साल "साती आसरा" को भोग चढ़ाने की परंपरा है। इसे मराठी में "सात खनाची परडी " भी कहते हैं, जिसका मतलब है कि भोग को सात हिस्सों में बांटकर चढ़ाया जाता है। मैंने भी पहली बार ये नाम सुना था, तो मुझे ज्यादा जानकारी नहीं थी। गांव के कुछ लोगों से पता चला कि साती आसरा को अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, और हर जगह इसके पीछे कोई न कोई पुरानी मान्यता जुड़ी होती है।
साती आसरा का मतलब सात देवियां या सात अप्सराएं होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि "आसरा" शब्द खुद "अप्सरा" से निकला है। कुछ जगहों पर इन्हें "सात जल परियां" भी कहा जाता है। मान्यता है कि ये सात अप्सराएं नदियों, कुओं, तालाबों और दूसरी जलधाराओं में निवास करती हैं।
कई लोगों का मानना है कि ये सात देवियां गांव को बुरी ताकतों से बचाती हैं, लेकिन ये उतनी ही खतरनाक भी होती हैं। अगर कोई इन्हें नाराज़ कर दे, तो वे उसे अपनी चपेट में ले लेती हैं, और फिर उस इंसान का बचना नामुमकिन हो जाता है। इसी वजह से गांव वाले हर साल इनकी पूजा करते हैं और भोग चढ़ाते हैं।
किसी ने इन्हें कभी देखा नहीं, लेकिन इनकी मौजूदगी महसूस की जाती है। गांव में बहुत से लोगों ने बताया है कि रात के वक्त अगर कोई कुएं या नदी के पास जाए, तो उन्हें किसी के हंसने, गाने या घुंघरू बजने की आवाज़ सुनाई देती है।
कई बार किसी ने इन्हें किसी बिल्ली या कुत्ते के रूप में भी देखा है, जो इंसानों को वहां से दूर जाने का इशारा करते हैं। रात 12 बजे के बाद गांव में कोई भी नदी या कुएं के पास नहीं जाता, क्योंकि माना जाता है कि रात के वक्त ये अप्सराएं पानी में खेलती हैं, और अगर कोई वहां चला जाए, तो उसे पानी में खींच लेती हैं।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि अमावस्या या पूर्णिमा की रात, अगर कोई इंसान पानी में डूबकर मर जाता है, तो ये सात अप्सराएं उसे अपनी दुनिया में खींच लेती हैं। ऐसे दिनों में गांव के लोग पानी से दूर ही रहते हैं।
पिछले साल, गांव में हर साल की तरह साती आसरा को भोग चढ़ाया जा रहा था। गांव के हर घर से लोग नदी या कुएं के पास जाकर भोग चढ़ा रहे थे।
उसी रात, गांव का एक लड़का अपने घर से भोग चढ़ाने के लिए निकला। वो गांव के बीच से गुजरती छोटी नदी के पास बने एक कुएं के पास गया। वहाँ जाकर उसने भोग रखा और गांव की परंपरा के अनुसार प्रार्थना करने लगा।
लेकिन अचानक न जाने क्या हुआ...
अगले ही पल वो ज़मीन पर गिर पड़ा!
फिर वो कीचड़ में किसी जानवर की तरह लोटने लगा। अचानक ही उसने पास की गीली मिट्टी और कीचड़ को अपने पूरे शरीर पर मलना शुरू कर दिया। वो कई मिनटों तक उसी हालत में पड़ा रहा।
और फिर...
वो एकदम से उठा और उसी हालत में अपने घर चला गया!
जब वो घर पहुँचा, तो उसके कपड़े और पूरा शरीर मिट्टी और कीचड़ से भरा हुआ था। घरवालों ने घबराकर पूछा—
"क्या हुआ? किसी से झगड़ा हुआ या कहीं गिर गए थे?"
लड़के ने धीरे-से गर्दन उठाई। उसकी आँखों में एक अजीब-सा डर था।
"मैं दो दिन में मरने वाला हूँ... बचा सकते हो तो बचा लो।"
बस इतना कहकर वो चुपचाप घर के एक कोने में बैठ गया।
घर में सन्नाटा छा गया।
शुरुआत में तो किसी को समझ ही नहीं आया कि वो लड़का ऐसी बातें क्यों कर रहा था, लेकिन फिर सबको याद आया कि वो कुएं के पास भोग चढ़ाने गया था। तभी घरवालों को एहसास हुआ कि शायद साती आसरा यानी सात अप्सराओं ने उसे अपनी चपेट में ले लिया है।
उसे इनका श्राप लग चुका था।
ये सोचकर उसके घरवाले बुरी तरह घबरा गए। उसी रात वे उसे लेकर गांव के भगत के पास गए। उन्होंने भगत को सारी बात बताई—कैसे उनका बेटा अचानक अजीब हरकतें करने लगा, कीचड़ में लोटने लगा और घर आते ही "मैं दो दिन में मरने वाला हूँ" कहने लगा।
भगत ने उन्हें ध्यान से सुना और फिर गंभीर होकर कहा—
"आज पूर्णिमा की रात है, इस वक्त वो जो भी चीज़ इस लड़के पर सवार है, वो बहुत ताक़तवर होगी। इस समय कोई भी उपाय काम नहीं करेगा, उल्टा अगर कुछ गलत किया गया, तो इसकी जान को खतरा हो सकता है। बेहतर होगा कि रात ख़त्म होने दो, तब देखा जाएगा।"
घरवाले और ज़्यादा डर गए, लेकिन उनके पास भगत की बात मानने के अलावा कोई और चारा भी नहीं था। उन्होंने लड़के को गांव के एक मंदिर में सुला दिया।
पर वो सोया नहीं।
वो बस मंदिर के कोने में अपने घुटनों के बीच सिर छुपाकर बैठा रहा, जैसे किसी चीज़ से बेहद डरा हुआ हो।
अगली सुबह, जब पूर्णिमा की रात खत्म हो गई, तो भगत ने लड़के से सवाल किया—
"तुम कौन हो? और तुम्हें क्या चाहिए?"
लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बस वही बात दोहराई—
"मैं जल्द ही मरने वाला हूँ..."
भगत समझ गया कि जिस भी आत्मा ने इसे पकड़ रखा है, वो इतनी आसानी से नहीं जाने वाली। वो इस लड़के की जान लेकर ही मानेगी।
भगत ने उस पर कुछ तांत्रिक उपाय करने की कोशिश की, लेकिन उन सबका उस पर कोई असर नहीं हुआ। लड़का बस कोने में बैठा सब देखता रहा और बार-बार एक ही बात दोहराता रहा—
"कुछ भी कर लो, मेरी मौत तय है। मैं जल्द ही मरने वाला हूँ..."
आख़िरकार, भगत ने हाथ खड़े कर दिए। "अब इसे सिर्फ देवी ही बचा सकती हैं," ये कहकर उसने घरवालों को किसी खास देवी के मंदिर में जाने की सलाह दी।
उसने कहा—
"यह सात अप्सराओं में से किसी एक देवी का मंदिर है। इसे वहां ले जाकर देवी की पूजा करवाओ। इसके हाथों से आरती करवाओ और देवी से माफी माँगने को कहो। यही आख़िरी उपाय है।"
अब मैं उस मंदिर का नाम नहीं बता सकता, क्योंकि इस बारे में ज़्यादा बताने से मना किया गया है।
घरवालों ने भगत की बात मानी और लड़के को लेकर उसी वक्त मंदिर के लिए निकल पड़े।
लड़का पूरे रास्ते बस चुपचाप बैठा रहा।
उसके चेहरे पर अजीब-सा सूखा और बेहद गहरी उदासी थी।
जैसे उसे पता था कि कोई उसे बचा नहीं सकता।
लेकिन घरवालों को अब भी उम्मीद थी।
शायद देवी अगर उसे माफ़ कर दें, तो उसकी जान बच सकती थी।
सुबह होते ही वे मंदिर पहुँच गए।
मंदिर में जल्द ही देवी की पूजा शुरू होने वाली थी। घरवालों ने जल्दी से पुजारी को बुलाकर लड़के के बारे में बताया। पुजारी ने उनकी बात सुनकर एक विशेष पूजा की तैयारी करने लगा।
इस दौरान लड़का मंदिर के एक कोने में बस चुपचाप बैठा रहा।
सब तैयार होने के बाद, पुजारी ने लड़के को आगे बुलाया।
पर वो अपनी जगह से हिलने को तैयार ही नहीं था।
घरवालों ने किसी तरह उसे जबरदस्ती पकड़कर देवी के सामने खड़ा कर दिया।
पुजारी ने उसकी माँ को आरती की थाली दी और कहा कि "लड़के के हाथ से आरती करवाओ और देवी से माफी मांगो।"
उन्होंने किसी तरह लड़के के हाथ में थाली पकड़ाई...
और तभी...
उन्हें तेज़ झटका महसूस हुआ!
लड़का सिहर उठा... उसकी आँखें पलटने लगीं... और उसने कांपते हुए आरती शुरू करने की कोशिश की...
लेकिन जैसे ही वो आरती का पहला शब्द बोलने वाला था...
वो ज़मीन पर गिर पड़ा।
घरवालों ने उसे हिलाने की कोशिश की...
लेकिन उसकी सांसें थम चुकी थीं।
मंदिर में मौजूद लोग स्तब्ध थे।
कोई समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर उसके साथ हुआ क्या था...?
कुछ लोग कहते हैं कि अगर उसे तुरंत अस्पताल ले जाते, तो शायद उसकी जान बच सकती थी।
लेकिन जो लोग उसकी हालत देख चुके थे, उनका मानना था कि इसे कोई डॉक्टर नहीं बचा सकता था।
गांव में इस घटना के बाद कई तरह की बातें होने लगीं।
कई लोगों का कहना था कि लड़के के घरवालों ने साती आसरा को चढ़ाया जाने वाला भोग गलत तरीके से चढ़ाया था।
भोग सात अलग-अलग हिस्सों में चढ़ाया जाना चाहिए था, लेकिन उन्होंने गलती से सिर्फ़ पाँच हिस्सों में ही चढ़ा दिया था।
इसीलिए सात अप्सराओं का कोप उस पर पड़ा था...
और फिर उसे कोई भी बचा नहीं सका।



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